काला चश्मा: जानिए स्विट्ज़रलैंड की विशेषता

Sphier Jllrd
4 min readMar 14, 2021
यूरोप और भारत में अंतर

भाग १

म भारतीय भारत में बहुमत में रहतें हैं। जो भी धर्म हो, कौनसी भी प्रदेश के निवासी हो, हम लगभग सभी भूरे रंग के है, अश्वेत चमड़ी वाले (थोड़े गोरे हो या नहीं सही), ज़्यादातर पश्चिम के लोग के दुनिया की धृष्टिकोण में हम सब भूरे ही हैं। यूरोप में जो लोग बहुमत में हैं, उन्हें हम भारतीय “गोरे” शब्द से चित्रित करते हैं — श्वेत चमड़ी वाले। अगर आप यूरोप के एक ऐसे शहर या गाँव पहुँच गए जहाँ भारतीय अल्पसंख्या में हो, तो इस भिन्नता से दिलचस्प कहानियों की शुरूवात हो सकती हैं। भारत के बारे में क्या लिखा जाता है, कौनसे नज़रिए से देखा जाता है, समाचार पत्रों और लोकल दूरदर्शन, फ़िल्में और शोज़ में यूरोप के स्थानिक (लोकल) भाषाओँ में जानने को मिलता है। भारतियों के बारे में क्या क्या बोला जा रहा है? सबसे अदभुद जानकारी यहाँ के लोगों से बातचीत करने पर मिलती हैं। इस निबंध में एक प्रवासी भारतीय के ऐसे कई यादगार अनुभव/पल प्रस्तुत है। प्रवासि भारतियों का सम्पूर्ण योगदान तब रहेगा जब वह अपने प्रत्यक्ष अनुभव दूसरों के साथ खुलके बाँटे। उदाहरण के तौर एक सुंदर देश स्विट्सर्लंड को लिया गया है जो अनेक हिन्दी फ़िल्मों में दिखने को मिलता है। देखें स्विज़ लोग हैं कौन? असली अमेरिकी और यूरोपी हैं कौन? इनकी परिभाषा क्या है? इनकी छिपी हुई दुनिया को प्रकट कैसे किया जाए? भारतियों के बारे में कैसे कैसे सवाल उनके दिल में उठते हैं?

स्विट्सर्लंड एक छोटे-युरोप (मिनी यूरोप) की तरह है क्योंकि यहाँ युरोप के अन्य देशों से आने वाले लोग की भाषाएँ दिनकर बोली जाती है — इनमे से चार स्विज़ राष्ट्रीय भाषाएँ हैं -फ़्रेंच, जर्मन, इटालीयन और रोमांश।

दिल तो पागल है फ़िल्म

आप बिकीनी क्यूँ नहीं पहनती?

यह मी-टू मूवमेंट से कई ५ साल पहले की बात है। स्विज़ आल्प्स पहाड़ियों में एक सुंदर सा गाँव था। गाँव में हम केवल एक ही भारतीय नागरिक थें, मुझसे पूछा गया जर्मन में, “बुरा मत माने तो आपसे कुछ पूछूँ?” तो मैंने जर्मन में कहा, “हाँ कहिए”। मैंने सोचा शायद चाय कैसे बनाते है, ऐसा कोई प्रश्न होगा। “आप भारतीय महिलायें बिकिनी क्यों नहीं पहनतीं?” आश्चर्यजनक तो में हुई, फिर में बोली, “क्या मैं भी आपसे कुछ पूछूँ?” वह बोली, “हाँ बेशक”, तो मैंने उत्तर में एक और प्रश्न प्रस्तुत किया — “भारत में तो महिलाएँ बड़े बैंक के मुख्य अधिकारी हैं, यहाँ स्विट्सर्लंड में महिलाएँ क्या बिकीनी ही पहनतीं हैं, यहाँ कौनसी महिला स्विज़ बैंक की उत्तराधिकारी है?” बहुत ही गहरी सोच से उसने उत्तर दिया, “प्रश्न तो अच्छा है, मुझे इतनी जानकारी तो है नहीं”। इस अनुभव के बाद फ़्रेंच और जर्मन में भारतीय महिलाओं के बारे में स्विट्सर्लंड में क्या दिखाया जाता है, इस पर मैंने और ग़ौर किया। अधिकतर, जर्मन डॉक्युमेंटरीयों में प्रियंका चोपड़ा के दोस्ताना बीच सीन को तो कभी भी दिखाया नहीं गया। आम तौर पर “भूका इंडिया, नंगा इंडिया” ही दिखाया जाया करता था।

भूरे रंग वाले क्यों?

प्रतिदिन, स्कूल में साथ आठ साल के एकमात्र भारतीय बच्चों से जर्मन में तरह-तरह के प्रश्न पूछें जाते — इनमे से एक था — (क्लास में केवल मेरा बच्चा ही एक था देसी, और सब स्विज़ बच्चें थे), क्या तुम भूरे रंग के इसलिए हो क्योंकि तुम बाग़ीचे में खेलने के बाद स्नान नहीं करते? अब ऐसे सवालों का क्या जवाब दिया जाए! हिन्दी में बच्चे को उत्तर दे की भई तुम्हारे सवाल का तो जवाब नहीं, वो तो समझ ही ना पाए! हमने अपने बच्चों को सुझाव दी की अगले बार बेटा जब ऐसे प्रश्न आए, सोच समझकर, थोड़ा बहुत मज़ा लिया जाए। अगले सप्ताह जब उससे पूछा गया, जर्मन में, की भई आप लोग इतने ग़रीब हो इंडिया में, तो यहाँ पहुँचे कैसे? पैसा कहाँ से मिला तुमको स्विट्सर्लंड पहुँचने के लिए ? (बच्चें थें आठ साल के)। ग़ौर से बेटा बोला — “डिज़्नी की कार्टून देखी है — अल्लादिन”? दूसरा स्विज़ बच्चा बोला, “हाँ हाँ देखी है!”।बेटा बोला, जर्मन में, “तो हम उसी जदुयी क़ालीन पर निकल पड़े, अपने हाथी अप्पू के साथ, लेकिन हाथी को यहाँ पसंद नहीं लगा, ठंड जो बहुत ज़्यादा है यहाँ, तो वो वापस चला गया”। घर आके ख़ूब हसें। इसके पश्चात, कक्षा में, स्कूल में, ऐसी और भी बहुत सारे दिलचस्प प्रश्नों के अन्य हास -परिहास भरी उत्तर देने को मिले!

यह घटनाएँ आल्प-पहाड़ियों के एक छोटे से कैथोलिक गाँव में घटीं, जहाँ चलते-चलते पता चला की भारत को यहाँ का आम आदमी किस नज़रिए से देखता है, कैसे न्यूज़ लोगों को प्रभावित करता है, कैसे छोटें बच्चों को भारत की ग़रीबी का ज्ञान है, लेकिन गांधीजी के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पता। मुझे यह अहसास हुआ की भारत को संजीदगी से जानना हर प्रवासी भारतीय का कर्तव्य बन जाताहैं, क्योंकि स्विज़ लोग ख़ुद अपने देश के बारे में जाने या ना जाने, गाँव के एकमात्र भारतीय से ज़बरदस्त सवाल पूछे जाएँगे। विशेष रूप से यदि वह “बुरा मत माने” से शुरू होतो। इन प्रश्नों के लिए हाज़िर जवाब रहने के लिए यह आवश्यकता है की अंतरष्ट्रिय स्तर पर जो रंग और भेदभाव चल रहा है, उस अंतर्विरोध पर जानिए। अंतरशतिय स्तर पर औपनिवेश काल के इतिहास के बारे में पढ़ने पर आपको इस भेद भाव की जड़ तक पहुँचे में और जानकारी मिलेगी।

जानिए स्विट्ज़रलैंड
यह एक पुरानी डबलरोटी (ब्रेड)बनाने वाली स्विज़ झोपड़ी है।

१५० साल पहले, इस पहाड़ी भूमि के कई हिस्से ग़रीब थे। पहाड़ी ज़िंदगी कठिन थी । इतना धन इकट्ठा करने के पश्चात्,२०२० में भी ,कई छिपे हुए कोनों में यह ग़रीबी दिखस सकती हैं।

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Sphier Jllrd

I write about racism and life as a minority in Switzerland.